उज्जैन में विलुप्त होती मानवीय संवेदना ,तब तो लिल रही है मृत्यु मानवों के प्राणों को -


 (चुन्नीलाल परमार) 



  •  

  •  उज्जैन / कहा जाता है,जहाँ मावनवता विलुप्त होने लग जाति हैं वहां शैतानियत अपना ताडंव करने लग जाती हैं, सनद रहे मानवता जिंदा रखना एक दो व्यक्ति का काम नहीं है ना ही इसमें ताजगी बनायें रखने के लिए किसी सरकारी तंत्र का दबाव होना आवश्यक है । हाँ यह ओर बात है, की मानवीय संवेदनाओं को क्रियाशील / नियंत्रण बनायें रखने के लिए सरकारी तंत्र,अपना कब्जा रखनें लग जायें, तब निष्प्राण मानव तन,मानवीयता को धिक्कारनेे के लिए प्रसंग बन जाता है ,। बस यही सबकुछ दर्शन हुआ, शिप्रा तट रेती घाट पर ,पांच घंटे तक ला वारिस देह, मृत्यु को प्राप्त प्राण, मानव तन मानवता को धिक्कारता रहा ओर इस धिक्कारने का कारण रहा है शासकीय तंत्र । समाज ने तो अपने दायरे का कार्य करके, शिप्रा नदी में निष्प्राण देह को किनारे पर लाकर नदी से बाहर कर दिया था, किन्तु अफसोस हैं, की यह निष्प्राण मानव देह, लगभग पांच घंटे तक जवाबदेही निर्धारित करने में ,अवाक बनकर बिना झपकाये आखों से आसमान को निहारती रही है ।

  •  देर होना संभव है किन्तु अंधेर होना अनुचित हैं ।

  • गुजरे जमाने की बातें हो गयी हैं जब किसी घटना की सूचना पुलिस तक जाती थी तब पुलिस का आंकलन होता था, क्या कोई व्यक्ति घटना में मारा गया है !!? यदि हां तो पुलिस पहुंचती थी अपने आलम से ओर यदि कोई घायल होता था तब पुलिस कहती थी ले आओ थाने पर तब बेचारे घायल या मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति को लेकर परिवारजन बेल गाडियो में लादे ले जाते थें किन्तु अब तो यह बातें गुजरे जमाने की हो गई है, पुलिस ओर प्रशासन आधुनिक संसाधनों से लेस हैं ।


  • अब तो एसी घटनाओं का आलोक में आना संवेदना विहिनता ही प्रतीत होता है या फीर कार्य अधिक ओर अमला कम,,

  • लोक डाउन का ठीक से पालन नहीं करवाने पर ,जिला पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार सिंह भडके अधिनस्थो पर, दि हिदायतें अनुशासनात्मक कार्यवाही संस्थित करने की, विचार करना चाहिए कि लोक डाउन का पालन करवाने के लिए भी एसपी साहब को मोर्चा संभालना पड रहा है, कितनी लचर पुलिस व्यवस्था हैं !!?

  • दो थानों के बीच नाना खेडा पुलिस ओर नील गंगा थानों के बीच उलझकर पडी रही मानवीय देह लोगों की नजरों का नजारा बनकर ।

  • आश्चर्य हो रहा है जानकर की पुलिस थाना प्रभारी को ही अपना नियंत्रण अधिकार क्षेत्र पता नहीं रहता है तब फिर ये कैसे करते होंगे अपने थाना अधिकार क्षेत्रों में अपराधों पर नियंत्रण !!!?

  • विचार करना लाजिमी है ,कि यदि मृत देह जो इतने लंबे समय तक लावारिश होकर प्रशासन की जानकारी में होने के बावजूद पडी रहे चिंता का विषय हैं , ऐसे में यदि किसी जानवरों द्वारा नोच खरोंच कर दी होती देह, तब मृत्यु कारण अनुसंधान ओर उसमें कारगर चिकित्सकीय जांच प्रभावित होना संभव हो जाता है ।


Popular posts from this blog

भाटपचलाना के, ग्यान गंगा पब्लिक स्कूल संचालक श्री लाभ सिंह सलूजा ने, दी हैं पालको को कोरोना काल में आर्थिक शुल्क राहत

भिंड में म,प्र, अखिल वैश्विक क्षत्रिय महासभा की बैठक संपन्न

जनता को लूटने के लिए लगाए जा रहे हैं नए मीटर --विधायक महेश परमार