शहरों से पलायन गांवो की ओर ना गाड़ी हैं ना घोडा , रक्त रंजीत कदमों में घाव पढे हैं , आँसुओ की हो रही हैं बरसात -
रक्त रंजीत कदमों में घाव पढे हैं , आँसुओ की हो रही हैं बरसात -
(चुन्नीलाल परमार)
- बड़नगर / देखें हैं मंजर इन अधेड़ आखों ने कंई, सुनें हैं केशों से आच्छादित इन कानों ने किस्से अजीब अजीब , एक झटके में 56'' को 36'' कर दिया, लालिमा गयी हैं देकर के धौखा ।
- प्रकृति के आगे किसी की भी नहीं चलती हैं जबतक प्रकृति के अपने सौचे काम पूरे ना होते हैं, भले हम ढिगे मारते हो विकास की ,किन्तु हमारा सारा विकास बे हाल होकर सडकों पर दोड रहा है, रोती बिलखती सिसकियाँ भर भर कर । ओरो का उदर भरने वाले स्वयं का उदर खिंच कर बांध रहा है क्यूं की भूख से उदर विचलित कर रहा है ।
- सरकारी मुलाजिम सडकों से लगाकर रुग्णालय तक , गलियों से लगाकर दूसरों के घरों तक अपनी सेवा परिवारों से दूर रहकर अपना वेतन कटवाकर खुशी खुशी सेवा दे रहा है हाँ देश विकास के नाम पर स्वयं का बडा पेट करने वाले विधायक सासंद कंई गलियों में दिखाई नहीं दे रहें हैं !!! चलो कूछने तो स्वयं की उंगलियां कटाकर शहीदों में नाम लिखाने की युक्ति खोज भी लि हैं, खूब सेवा की हैं साहब ने कोरोना महामारी में लोगों की जिससे साहब भी संक्रमण की चपेट में आ गयें , लगा कोरोना का नाम कुष्ठ रोगियों से भी हेय भरा है, सो सुन ली ओर जांच रिपोर्ट को नकार जैसे कोई अपीलिय न्यायालय जातें हैं ऐसे लगाकर छलांग 14 दिनों की बजाय 3 दिनों में ही ताल ठोंक कर रुग्णता मुक्त होकर आ डटे हैं, फीर राजनीति के रण में ।
- भाई फीर जो ट्रायल रुग्णालय में रुग्णता से लडते मृत्यु को प्राप्त हुए हैं , वे कोरोना संक्रमित ही थे या फिर किसी प्रयोगशाला के भेंट चडे हैं !!!? मेरा संदेह कतई गलत नहीं हैं, हाँ यह अवश्य है की में कोई ख्याति प्राप्त या लेखन विधा में पुरुष्कार प्राप्त लेखक नहीं, हूँ सो मेरे विचारों को कोई मानें यह पक्की शर्त नहीं है ।
- हाँ इतना अवश्य हैं की मेरे लिखने से आपका उग्नित ग्यान पर पानी के छींटे अवश्य पडेंगे, जिससे आपकी उग्नित मूर्छा दूर हो सकती है, ओर आप विचार करेंगे की इलाज के दौरान हमारे अपने कोरोना संक्रमित होकर स्वर्गीय हुए हैं। वे कंई ला परवाही या प्रयोगशाला के लिए उपयोगी बनने की फिराक में तो स्वर्गीय नहीं बन गयें हैं !!? क्यूँ कि बढे लोग तो उज्जैन की आरडीगार्डी की कोरोना संक्रमित होने की रिपोर्ट को ही चैलेंज करके इन्दौर से एक नहीं अधिक व्यक्ति कोरोना पाजिटिव रिपोर्ट को निगेटिव बनवाकर दो चार दिनों मैं ही लोट आयें हैं ।
- क्या यह जीवन ओर मृत्यु रुपयों का खेल बनता जा रहा है !!? खैर प्रसंग प्रासंगिक भले ना हो किन्तु गरीबों की लटकती मृत देह साइकिल पर लटकी मुझे कोस रही है, कोस रही है गरीबों की आखों से लटकती लाचारी ओर बे बसी, धिक्कार रहा है मुझे मेरा सारा पुरुषार्थ क्यूँ की धन नहीं हैं मेरे पास, मेरे अपने भूखों मर रहे हैं चल चल कर पैदल बिलख रहे हैं, कंधों पर भावी भविष्य उग्निदं सर पकड़ भूखा बैठा है ।
- पीठ पर बेचारगी लदी पडी है ।
- ओर हमारे भाग्य विधाता आज भी बे शर्म बनकर अंतरिक्ष में बसने के लिए बजट लाचार गरीबों को बताकर श्रापित होने के लिए चिडा रहे हैं ।
- सारे शहर नि शब्द होकर रो रहे हैं गाँव अपनों को पुनः पाकर विलापित होकर रो रहें , बिछडो को पाकर आधि आधि रोटी खाकर पुनः साथ रहने के वादे कर रहे हैं , प्याज ओर सुखी रोटी खाकर पुलकित दिखाई दे रहें, देखो मेरा गाँव जीस की धुल में से ही पुनः फूल खिल रहे हैं ।
- लग रहा है , भारत गावों में ही बसता है ।फल फूल साग सब्जी कंद मूल अनाज, दुध छाछ दंही घी मट्ठा ओर कंई प्रकार की औषधियों का कच्चा माल गांव ही में उत्पादन होता है, जहाँ तक मैं समंझता हूँ शहर बसाने में गांवो का ही हाथ है, नहीं तो शहर तो वीरान है,देखाना शहरों को खाली होते कोरोना की घडी में !!!शहर पलक पावडे बिछा रहा है ग्रामीण मजदूरों के लिए, सरकार कितने बहाने बना रही है, ग्रामीणों मजदूरों को शहरों में रोकने के लिए,। गांव तो गांव होता है !! शहर की आबो हवा हुई दुष्वार, चल मेरे भाई गांवो की सौधी मिट्टी की महक का लेने के लिए उपचार । देखी अंगडाई गांवो की सरकार !!! ओर शहरों को भी कर दिया हैं उदास ओर हा-हा कार,। सब एक दुसरे से पूछ रहे हैं,क्या करें सरकार !!!?
- शहर से बे आबरू होकर निकला हैं मेरा गाँव , देश की सडकों को पाट दिया है मेरे गांवो के लाचार मजबूर मजदूरों ने ।, दुनिया को परोपदेश देने वालों को ही केद कर दिया है गरीब मजदूरो के आँसुओ ने,। पैरों से टपकते खून की बूंदो ने, लिख दी इबारत कंही असफलताओं की । , दहाडे सुनाईं दे रही है, गली गुझो में ,चौराहे की चौपाल पर ।
- शहर को श्रृंगार से आच्छादित करने वाले अब लोट आयें हैं अपने घर द्वार ओर गांव भले हो गयें हैं बे हाल, सरकार भी सोच रही है अब कैसे जायेंगे इनके घर द्वार खैर इन राजनीतिक लोगों की शर्मिदंगी की कोई कीमत तो होती नहीं है,, फिर खोज लेंगे कोई ना कोई उपाय ।