राजनीति के जुगाली करते,बे शर्म नेता ओर सडक पर तडपते हुए , भारत को आत्म निर्भर बनाने के सपने पालते, लाश बनते  इंसान -




निहारिका वाणी न्यूज़


राजनीति के जुगाली करते,बे शर्म नेता 


 ✍(चुन्नीलाल परमार ) 



 उज्जैन / बड़नगर / मुझे घटना ओर किरदार का परिचय करवाने में शब्दों को शर्मिदा करने  में संकोच हो रहा है, कल के सपने ओर अपनों से मिलने के सपने संजोये गरीब मजबूर मजदूर को सडकों पर दम दोडती घटनाओं को संवारने के लिए ,शब्दों को संपादन करने में संकुचित होना पड रहा है ।
ना फिक्र कोरोना से मरने की ना चिंता थी भूख से बांधे पेट की, ना आलोचना के लिए मुखुर होने दिया मुंह को,बस बडने दिये कदमों को ,अपनो से मिलने के लिए कदमों को होसंले दियें  ओर दी शक्ति  ।
ये वो देश भक्त हैं, जो जो देश को आत्म निर्भर बनाने के लिए गरीबी में भी उद्योगपतियों के आर्थिक दैहिक शोषण का पोषण बनते रहे हैं । जो विदेश को सुदृढ़ कर रहे थें, उनके प्रति सरकार सजग थी, हवाई जहाज उपलब्ध थें, सरकार डालर कमाई की भूखी थी ,सो पहली फिक्र भी उनकी ही थी । मजदूर के आंसू तो सबके लिए बरसाती पानी समान दिखाई देते हैं, ओर अमीरों के चेहरे की झुर्रियों को देख ,सरकार भी सख्ते में आ जाती हैं । भला मध्यप्रदेश के  मजदूरो के मरने के लिए औरंगाबाद की रेल पटरियां नसीब में थी ,ओर उत्तरप्रदेश में सडक हादसे में 24 मजदूरों के लिए ट्रक हादसा नसीब था । कंईयो ने अपनो को खोया किन्तु उनकी गिनती थी वगैरह में ।
बुझ गयें पल भर में कुल दिपक, सिमट गयी पल भर  में भौतिक अपनों के बीच की दुरिया, पल भर  में हो गया हा हा कार ओर आसमान को चिरती चीत्कार ,थम गयें धड़कते उछलते जिस्म,लाश बन गये गुल मोहम्मद,गुल रेज,गुलाब चंद्र,गुलाब बाई , गुड्डू,बबलू सब, एक टक मुझे देख रहे थे ओर में अपनी बेचारगी ही प्रदर्शित कर रहा था ।
चल पडा दोर बे शर्मो का आरोप प्रत्यारोप का, ऐसे लगा रहें थे एक दुसरो पर आरोप , जैसे खेल रहे हो खेल फूटबाल का  , नेट बन रहें थे मरने वालो के नाम,,,हाय रे बे शर्म इंसान,,,,हाय रे बे शर्म इंसान,,,


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